आर्य और काली छड़ी का रहस्य-4
अध्याय 1
12 साल बाद
भाग-3
★★★
विष्णुवर अंधेरी परछाइयों की ओर जाते हुए बिल्कुल उनके करीब पहुंच गया। वह सबसे आगे खड़ी अंधेरी परछाई ठीक सामने खड़ा था। आर्य अभी भी अपने बाबा को ही देख रहा था।
विष्णुवर अंधेरी परछाइयों की ओर देखते हुए मुस्कुराया और मुस्कुराने के बाद कहा “अक्सर एक बड़े मकसद के लिए छोटी कुर्बानी देनी पड़ती है। मुझे खुशी होगी, मुझे खुशी होगी इस बात की कि आज मैं भी एक कुर्बानी दे रहा हूं। एक ऐसी कुर्बानी जो सिर्फ तुम्हारी विनाश के लिए नहीं, बल्कि तुम्हारी पूरी दुनिया के विनाश के लिए उत्तरदाई होगी।” इतना कह कर विष्णुवर ने जोर से उस अंधेरी परछाई को धक्का मार दिया।
अंधेरी परछाई को धक्का मारते ही पीछे की कुछ अंधेरी परछाइयां दूर जा गिरी। इससे पहले वह संभलती, विष्णुवर ने जोर से आर्य को कहा “उस अंगूठी को ऊपर हवा में करके वर्ष वर्धन का नाम लो।”
आर्य ने अपने बाबा के यह शब्द सुने। लेकिन उसके बाबा ठीक उसकी आंखों के सामने एक अनदेखी प्रजाति के सामने खड़े थे, ऐसे में उसका ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपने बाबा की और ही था। उनके द्वारा कहे गए शब्दों को उसने पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया था।
विष्णुवर ने जब यह देखा तो वह दोबारा बोले “आर्य, मैंने तुमसे जो कहा है वह करो। अंगूठी को ऊपर हवा में करो और वर्ष वर्धन का नाम लो।”
आर्य की आंखों से आंसू निकल आए। उसने रोते हुए अंगूठी ऊपर की और अपने बाबा द्वारा कहे जाने वाले नाम का उच्चारण किया। “वर्ष वर्धन....”
देखते ही देखते अचानक अंगूठी में कंपन होने लगा। वह कंपन पहले कम था और फिर धीरे-धीरे बढ़ता गया। अचानक उसके हाथ से अंगूठी निकली और वह करिश्माई तौर पर हवा में तैरने लगी।
इधर नीचे गिरी अंधेरी परछाइयां संभल चुकी थी। उनमें से एक अंधेरी परछाई ने अपना हाथ आगे किया और विष्णुवर के पास कर उसे उसके सीने के आर पार कर दिया। अंधेरी परछाई के इस किए गए वार से एक ही झटके में विष्णुवर का कलेजा अंधेरी परछाई के हाथ में आकर दूसरी ओर से बाहर निकल गया।
आर्य यह देखकर चिल्लाया “बाबा...” और अपने बाबा की तरफ बढ़ा। मगर विष्णुवर ने अपना हाथ आगे कर उसे आगे बढ़ने से रोक दिया।
वह पीड़ा से भरी करहाती हुई आवाज में बोले “मुझे कब से इस बात का फैसला करना था, कब से की तुम जिस चीज के लिए बने हो उसकी जिम्मेदारी का निर्वाह मुझे करना है, या किसी और को। और अब यह फैसला मैंने कर लिया है। अब तुम्हें तैयार करने की जिम्मेदारी मेरी नहीं बल्कि उनकी होगी, जिनके लिए तुम बने हो। मेरे बेटे.... हमेशा एक बात याद रखना.... तुम...” उनकी आंखों से भी आंसु झलक गए। “.....तुम उम्मीद हो।” अंधेरी परछाई ने अपना हाथ विष्णुवर के शरीर से निकाल लिया जिससे वह कदमों के नीचे जमीन पर गिर पड़ा।
आर्य स्तब्ध अभी भी अपनी जगह पर खड़ा अपने बाबा को देख रहा था। विष्णुवर का हाथ अभी भी उसे अपनी जगह पर रोके हुए था। वहीं उसके पीछे जो अंगूठी हवा में गई थी वह सफेद रोशनी से चमकती हुई धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। अंगूठी बड़ी होते हुए किसी ऐसे दरवाजे में बदल रही थी जिसके दूसरी और सफेद बर्फीले मैदान दिखाई दे रहे थे।
विष्णुवर ने कदमों के बल नीचे गिरने के बाद कहा “आर्य... मैंने तुम्हें तुम्हारी मंजिल दे दी है। यह अंगूठी, यह तुम्हें एक ऐसी जगह ले कर जाएगी जहां तुम्हें कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा। वहां तुम्हारी वो मंजिल होगी, जहां तुम अपने सफर की शुरुआत करोगे। जब तक तुम 21 साल के नहीं हो जाते... तब तक तुम्हें यहीं रहकर अपने सफर के लिए तैयार होना है। इतना तैयार कि कल जब अंधेरे के शहंशाह भी तुम्हारे सामने आकर खड़े हो जाए, तब उन्हें भी तुम्हारे आगे घुटने टेकने पड़े। जाओ मेरे बेटे जाओ। जल्दी इस अंगूठी के अंदर चले जाओ। ”
आर्य अपने बाबा की कुछ बातों को समझ पा रहा था जबकि कुछ बातें समझ पाना उसके बस की बात नहीं थी। उसने रोते हुए अपने बाबा के रोकने के बावजूद उनकी ओर जाने की कोशिश की लेकिन जैसे ही उसने दो कदम बढ़ाए उसके बाबा कसम देते हुए बोले “बेटा तुम्हें कसम है मेरी। जाओ, अंगूठी के दूसरी ओर चले जाओ। ”
अंधेरी परछाई में जिस परछाई ने अपना हाथ विष्णुवर के शरीर के आर पार किया था, वह पीछे खड़ी परछाइयों से आदेशात्मक स्वर में बोली “तुम सब खड़े खड़े यह मेरा मुंह क्या देख रहे हो। जाओ और जाकर उस लड़के को भी वैसे ही मार डालो, जैसे हमने इस बुड्ढे को मारा है। आज रात को हम इन दोनों के कलेजां पकाकर खाएंगे।”
बाकी की सभी अंधेरी परछाइयां तेजी से उसकी ओर बढ़ पड़ी। वहीं विष्णुवर आर्य को कसम दे चुका था तो मजबूरन वह रोते हुए अंगूठी में बने दरवाजे की ओर जाने लगा। उसके जाते जाते विष्णुवर निष्प्राण होकर जमीन पर गिर गया। आर्य जैसे ही अंगूठी के उस पार गया, अचानक रोशनी का एक तेज झमाका हुआ और पूरा बना दरवाजा अंगूठी के साथ ही गायब हो गया।
सारी अंधेरी परछाइयां उस जगह तक पहुंची तो उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा। वह सब की सब खाली हाथ रह गई। उन्होंने मुड़ कर अपने आदेश देने वाले साथी की तरफ देखा। उनके देखते ही साथी ने गुस्से से कहा “अब क्या। ना जाने कैसी मनहूस घड़ी में मैं तुम लोगों को साथ लेकर आया, इंसानों से नफरत करने के बावजूद मुझे इंसानों की कहावतें बार बार इस्तेमाल करनी पड़ रही है। चलो अब चले, क्या फायदा पछताने का जब चिड़िया खेत ही चुग गई। आज हमारे हाथ से एक शिकारी निकल कर सुरक्षा कवच से गिरे आश्रम में चला गया। आश्रम वाले पहले से ही बाहर नहीं निकल रहे थे, अब यह लड़का भी वहां जाकर दुबक कर बैठ जाएगा।”
जल्द ही वहां मौजूद अंधेरी परछाइयां धीरे-धीरे हवा में विलीन होती गई। सबके विलीन होने के बाद आसमान में छाए काले बादल हट गए। पानी का काला रंग भी अपने आप ठीक हो गया। सब चीजें पहले जैसे हो गई, मगर एक चीज जो पहले जैसे नहीं हो पाई। विष्णुवर का निष्प्राण शरीर जो अंधेरी परछाइयों का शिकार हो गया था, वो वैसा का वैसा ही पड़ा रहा। शायद वह मरते वक्त अपनी मौत से निराश नहीं था, क्योंकि वह इस बात को लेकर खुश था कि मरने से पहले उसने अति महत्वपूर्ण काम को अंजाम दे दिया। उसने आर्य को सुरक्षित कर दिया। उस आर्य को.... जो अंधेरे के शहंशाह को खत्म करने के लिए बना था।
★★★
आर्य अंगूठी वाले घेरे से बाहर आया तो तेज ठंडी हवाओं की वजह से वह अंदर तक सिहर गया। उसे ठंड के एहसास नहीं होते थे, मगर आज वह भी उसे महसूस कर पा रहा था। उसने देखा उसे लाने वाली अंगूठी छोटी होकर उसके हाथ में आ गई थी। जिसे पकड़ने तक वह हवा में तैरती रही। आर्य ने अंगूठी को अपनी मुट्ठी में बंद करते हुए आसपास देखा। वह एक अलग ही जगह पर खड़ा था। एक ऐसी जगह जो बर्फीले मैदान में मौजूद थी। उसके ठीक सामने इंटों और पत्थरों से बनी किसी राजा महाराजा के जमाने की दिवार थी। जहां बीचोबीच एक बड़ा लकड़ी का दरवाजा लगा हुआ था। इसके अलावा दूर-दूर बर्फीली पहाड़ियों के अलावा और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
आर्य की आंखों में एक पल के लिए अपने बाबा के दृश्य आए, अब से कुछ देर पहले वह कैसे खुशियां मना रहा था, उसके बाबा ठीक उसके सामने थे, और अब वह उन्हें खो चुका है। कुछ ऐसी प्रजातियों की वजह से जो उसके लिए अज्ञात थी।
आर्य कुछ देर तक बाहर बर्फीले मैदानों में खड़ा अपने बाबा के बारे में ही सोचता रहा। फिर उसने सोचना बंद किया और अपने कदम सामने मौजूद लकड़ी के बड़े से दरवाजे की तरफ बढ़ाएं।
वह धीमे-धीमे कदमों से दरवाजे की ओर जा रहा था। जैसे जैसे उसकी दूरी दरवाजे से कम हो रही थी, वैसे वैसे दरवाजा और भी स्पष्ट नजर आ रहा था। लकड़ी के होने के साथ-साथ दरवाजे पर अलग तरह की नक्काशी भी थीं। ऐसी नक्कासी जिसमें उगते हुए सूरज और आसमान के चमकते तारों का दृश्य था। सूरज और आसमान के चमकते तारे कभी एक साथ दिखाई नहीं देते, लेकिन यहां दरवाजे पर उनकी साथ होने की नक्काशी बनी हुई थी।
आर्य चलता चलता दरवाजे के बिल्कुल करीब आ गया। दरवाजे के बीच वाली दरार के दोनों ही और लोहे के बड़े-बड़े गोल कुंडे टंगे हुए थे।
आर्य अब ठंड को और भी ज्यादा महसूस करने लगा था। उसने कंपकंपाते हुए थुक अंदर गिटका और दरवाजे को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया। मगर जैसे ही उसने दरवाजे को हाथ लगाया उसे बिजली का जोरदार झटका लगा, और वह उछलता हुआ पीछे दूर जा गिरा। गिरते ही उसकी आंखों के सामने खड़े आसमान के दृश्य आ गए जो धीरे-धीरे धुंधले हो रहे थे। उसकी आंखों पर बेहोशी छा रही थी। दृश्यों का धुंधला होना और भी ज्यादा बढ़ा और वह पूरी तरह से बेहोश हो गया।
एक ऐसी जगह के सामने.... जो उसके लिए अज्ञात थी। और उसके बेहोश होने के बाद ....उसके दरवाजे खुल रहे थे।
★★★
Horror lover
18-Dec-2021 04:37 PM
Age kya hoga Rama re, Jane kya hoga maula re
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Seema Priyadarshini sahay
08-Dec-2021 06:33 PM
ओ गॉड !अब आगे..👏👏👏👏
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